STORYMIRROR

Anita Sharma

Drama Tragedy

3  

Anita Sharma

Drama Tragedy

डेढ़ होशियार

डेढ़ होशियार

1 min
261

अक्सर ज़्यादा होशियारी अंगूठा दिखाती है,

अपनी अय्यारी खुद को ही मुँह चिढ़ाती है


विमुख हुए ज़रा...और हटी सावधानी,

ये हौले से...दीमक सी पोला कर जाती है


ना आना नज़र के धोखे में किसी के,

ये दुनिया तो आँखों से काजल चुराती है


दग़ाबाज़ी ने डंक अक्सर चुभाया है,

हमारी नादानी उनका हौसला बढ़ती है


डेढ़ होशियारी में...भूल बैठे वो कि

पैरों में ठुकी नाल ख़ाक रफ़्तार बढ़ाती है


नकाब में रहकर शान दिखाने से, शायद,

रुतबे में नहीं नायाब, किरदारी आती है



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Drama