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Deepika Kumari

Romance

4.5  

Deepika Kumari

Romance

दास्ताँ :दास्ताँ चिट्ठीयों की- चिट्ठियों की

दास्ताँ :दास्ताँ चिट्ठीयों की- चिट्ठियों की

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महबूब से पूछा 

ये दास्ताँ चिट्ठियों की तो 

आँखों में चमक और

चेहरे पे मुस्कान लिए 

हौले से कहा 

ये उन दिनों की बात है


जब रोज़ रोज़ न बातें हो पाती थी 

बस ख़्वाबों में ही मुलाक़ातें होती थी 

दिल की दास्ताँ हो या 

सपनों का महल 

उस कोरे काग़ज़ को रंगीन करते

करते ही अपनी ज़िंदगी को रंग लेते थे।


बार-बार डाकियाँ का रास्ता तकना

आवाज़ आते ही 

दिल का थम सा जाना हो या 

ख़्वाहिशों के पर निकल आना 

वो क़समें वो वादे 


वो साथ जीने मरने हसरतें हों या 

क़भी छुपते- छुपाते मिलने के दिन गिनना

या घर से रफ़ूचक्कर

होने की तारीख़ तय करना

ये सब चिट्ठी में लिखना और 

जवाब आने का 


इंतहा की हद तक इंतज़ार करना 

और क्या -क्या कहूँ 

ये ही तो है अफ़साने मुहब्बत की 

और दास्ताँ चिट्ठियों की।


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