चुगल खोर
चुगल खोर
दोस्त कभी विरोधी रूप में
जीवन में सबके आते है
भावनाओ से तेरी खेल खेल कर
पक्का विश्वास दिलाते है
कर ना सके यकीन किसी पर
झटका ऐसा दे जाते है।
कभी जला के कभी बुझा के
भूल बिसरों को याद दिलाते है
जले को वो और जलाकर
बुझी राख को फिर भड़काते है
इधर उधर की बाते कर
सब रिश्तो में आग लागते है।
लाभ मिले ना और किसी को
उनकी हानि की सेज सजाते है
हँसी -सुखी जीवन वो
नफरत भर वो आग लगाते है
कुछ भी करो पर ये तो बताओ
किस जन्म का बैर निभाते है।