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Samarth Kalanke

Fantasy Abstract

4.0  

Samarth Kalanke

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चंद्रमा एक, वायरस, डगर, समय बड़ा बलवान

चंद्रमा एक, वायरस, डगर, समय बड़ा बलवान

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         चंद्रमा एक

आकाश में दिखते तारे अनेक है, है एक ही अकेला चन्द्रमा 

शीतलता की रश्मियों से  नहलाता सभी को है      

सुख शांति का सदैव  कराता अहसास है कभी दूर पहाड़ों के पीछे से      

उगता और डूबता ऐसा लाल सिंदूरी गोले सा है कभी समुद्र के

अंदर से  प्रकट होता और डूब जाता है लगता है अभी आ जाएगा     

हाथ की पकड़ में जब पास जाओ इसके तो दूरी उतनी ही बनाये रखता है 

सहारा है यात्रियों का रात बिताने का माध्यम है  रही लालसा है सदियों से    

चंद्रमा को पकड़ने की  असमर्थ रहे भगवान भी  डोर परिश्रम की ले       

विवेक का ताना बाना बुना वैज्ञानिकों ने उड़न खटोले को 

नाम दिया चंद्र यान का और पहुंचा दिया चांद पर।।

     वायरस

     

वायरस डरते क्यों हो छोटे से  केरोना वायरस से उससे भी

भयानक तनाव का  वायरस, बैठा हर मानव में हैं  

महामारी के सभी गुण रखता अपने ही है संग तन मन सबको है खा जाता    

अंग अंग पर चढ़ नाच दिखाता  मौत का पैगाम है यह लाता   

इसका कोई वेक्सीन मानव अभी तक खोज नहीं पाया  फिर क्यों घबराता क्षणिक       

करोना  वायरस से है तू  जीवन की नैया को छोड़ मझधार में चले जाते हैं प्रियजन    

साथ नहीं देता वृद्धों का बातों के बाण चलाते हैं तब आता तूफान तनाव का    

सबकुछ क्षत विक्षत कर जाता है यह वायरस  भूखे नंगे बच्चे जब    

फुटपाथों पर दिखते हैं रोते सोते तनाव की चादर तान   

झूठे सपनों को बुन पेट दबाये वे सो जाते हैं दहल जाते हैं सबके मन      

वहीं द्वार पर खड़ा खड़ा यह वायरस मुस्काता है कैसे इससे छुटकारा पाये       

जीवन मधुर बनाये।।

          समय

 समय बड़ा बलवान है

समय होता बड़ा बलवान है  जानते हैं सब पर मानते नहीं    

निकल पड़ते होड़ लगाने को  खाते फिर अपनी ही मुंह की है   

चलाता समय अपना ही है चक्र, गरीब बनता सहज ही

अमीर सुख का कभी न देखा मुख सर्व सुखी संपन्न बनता वह    

रंक कभी बनता राजा और होता राजा रंक कभी न सोचा दर दर भटकेंगे    

महलों में रहने वाले राम  धराशायी होगा शक्ति शाली रावण   

अभी अभी तो पलटा खाया समय ने ऐसा कोरोना ने बदल दिया     

विश्व का रूप मनोहर सीख सभी ने पाई अपनी शक्ति का किया घमंड   

निर्बुद्ध गिरा पतन के गर्त में।।।     

          डगर

डगरिया है टेढ़ी मेढी राह बहुत सकरीली अनगिनत कांटे बिछे हुए हैं

कैसे तुम तक पहुंचूं कुछ तो बता दो मेरे नाथ

मति हो रही है भ्रमित संपूर्ण विश्व लग रहा शापित चारों ओर फैली है

नीरवता भयावह लग रही यह शांति अपनी कांति फैलाकर  

नई दिशाओं को  उजियारों से अति सुगम बना दो मेरे प्रभु  

राहें निसपंद पड़ीं हैं हो रहे हाथ पैर है सुन्न 

आगामी संकट की कल्पना से मन मस्तिष्क हो गया है कुंद   

अपनी मुस्कुराहट से सभी में नयी चेतना जगा दे  

कोहरे का गुबार हटा दें आसमां से सुख का अमृत जरा बरसा जा     

समस्त ब्रह्माण्ड में खुशियों का नाद फैला दें  जड़ चेतन नाच उठे      

ऐसा कोई राग सुना जा  धन्य हो जायेगी धरा।।।     


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