मां
मां
मां दस वर्ष बीत गए आज के दिन दो फरवरी को गई थीं छोड़ कर हमको। याद वहीं पर खड़ी है आज तक। मन बहुत व्याकुल है तुम्हारी प्यारी आवाज जो भर देती थी संगीत सूने आँगन में सुनने को जी मचलता है आज। पकड़ने को उसे में उड़ गई आसमां में बादलों में अटक कर रह गई। अश्रु धार चुपके से सावन का अहसास कराती रही। मन के आँगन में बिजली कौंध जाती है। आवाज फोन पर आती सी है लगती कौन बोल रहा है, हाँ ! मधु बोल रही है। कैसे अपने को समझाऊँ राग कोई भाता नहीं, कैसे दीप मधुर जलाऊ जीवन पथ के अंधियारे दूर भगाऊँ मानस की धरती पर उसी रूप में तुम्हें बुलाऊँ मन अपना हर्षित कर पाऊँ।।।