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मधु प्रधान मधुर

Abstract

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मधु प्रधान मधुर

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बचपन से पचपन तक

बचपन से पचपन तक

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 जब पहुंचे पचपन में

 याद बहुत आया तब

 अपना बीता नायाब

 मदमस्त जमाना

 कैसा सुंदर बचपन था

 सखियों के संग पल पल

 समय मस्ती भरा बिताया

 घर-घर अनुशासन बहुत कड़ा था

 दीया जलते ही बच्चों को

 घर अपने जाना ही पड़ता था

 समय पाबंदी का अनुपालन

 हर्षित हो हम सब करते

 आज्ञाकारी बच्चे कहलाते

मामा,चाचाओं और मौसी

 के बच्चों के संग मिलकर

 दिन भर धूम मचाते 

 नाना खेलों का खुश हो

 करते आयोजन थे

 सांसारिक गतिविधियों ने

 होड़ लगाई ऐसी

 विवाह बंधन में बंधे सभी

 सीमित हुआ हुड़दंग

सिमट गये छोटे परिवारों में

 दुख दर्द भी प्रकट करना

 हुआ दूभर बहुत

 हुये स्वार्थी सब लोग

 वृद्धों का साया छूटा

 आसमान से तारा टूटा

 बचपन से पचपन बन गया     

बीता अपना एक जमाना।।


   


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