चक्रवर्ती की क्रूरता
चक्रवर्ती की क्रूरता
क्रूरता जन्म जात नहीं होती
वह पलती है आस-पास के
माहौल में, परवरिश में
दिखाई देती है समाज में,
परिवार में संसार में
"अशोक" के साथ भी कुछ
ऐसा हुआ था।
नादान, मासूम, अबोध बालक
जब ऊंच, नीच, सगे-सौतेले,
दास और मालिक के चक्रव्यूह
में फँस गया था।
कदम-कदम पर अपमान से
आहत मन तड़प कर रह गया था
जननी का अपमान, उसकी दुर्दशा
सीमाएं पार हो गईं जब सहन शक्ति की,
तो एक वीर चक्रवर्ती के साथ
क्रूरता स्वतः कब जुड़ गई
वह स्वंय इससे अनजान था
किन्तु अन्तः में दबी मानवता।
चंद्रभागा की लालिमा देख
झंकृत हो उठी और लौट
आई अपनी स्वाभाविक अवस्था में,
सौंप दिया परिवार सहित स्वयं को
बुद्ध की शरण में।
तज अपनी चक्रवर्ती सम्राट वाली
ओढ़ी क्रूरता।।