STORYMIRROR

Babita Jha

Tragedy

4  

Babita Jha

Tragedy

चीत्कार

चीत्कार

1 min
302

चारों तरफ व्यभिचारी है

लूट पाट की तैयारी है

दुश्मन सभी मानवता के

क्या करेगे ईमान बचा के


मिट रही समाज की नारी है

बढ रही मक्कारी है

समाज के पहरेदारो जागो

अब ना कर्तव्य से अपने भागो


नहीं चाहिए बराबर का अधिकार

बस जीने दो समाज के पालन हार

अगर दुर्गा जग जाएगी

चारों ओर प्रलय छाएगी


हाथ जोड़कर विनती है

घर से ही संस्कार मिलती है

संस्कृति को बचाना है तो

अब जागरूक हो जाना है।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy