चीत्कार
चीत्कार
चारों तरफ व्यभिचारी है
लूट पाट की तैयारी है
दुश्मन सभी मानवता के
क्या करेगे ईमान बचा के
मिट रही समाज की नारी है
बढ रही मक्कारी है
समाज के पहरेदारो जागो
अब ना कर्तव्य से अपने भागो
नहीं चाहिए बराबर का अधिकार
बस जीने दो समाज के पालन हार
अगर दुर्गा जग जाएगी
चारों ओर प्रलय छाएगी
हाथ जोड़कर विनती है
घर से ही संस्कार मिलती है
संस्कृति को बचाना है तो
अब जागरूक हो जाना है।