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Ratna Kaul Bhardwaj

Abstract Tragedy Inspirational

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Ratna Kaul Bhardwaj

Abstract Tragedy Inspirational

जद्दोजहद

जद्दोजहद

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दिन गुज़रा हज़ार टुकड़ों में , रातें भी वीरान थीं

सौगातों ने मुंह फेरा था, आँखें भी परेशान थीं

दिल ने चाही थी वफादारी, जफा वाले मिलते गए

हर पहर हर लम्हा रोया, बरसात भी हैरान थी

रिम झिम बूंदों से इश्क बहा, दिल रोया पर आँखें हंसी

बातें जो होंठों तक आई, वह भी तो पशेमान थीं

चाहा था कोई दिल पहचाने, कई सांचों में डल गई

मात पे मात मैं खाती रही, अन्दर से लहूलुहान थी

जद्दोजहद का जज़्बा उभरा, दलदल में थी धंसी हुई

जिस पर अब हक था मेरा, वह मैं थी, कोई और इंसान नहीं

नई आरजुओं ने मुझे संभाला, पत्थर दिल अब मेरे न थे

हसरतें बोली जी लो! है कायनात तेरी खाली आसमान नहीं..



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