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Rajeshwar Mandal

Tragedy

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Rajeshwar Mandal

Tragedy

खिड़की

खिड़की

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वो जब भी इधर से गुज़रता होगा

खिड़की की तरफ देखता होगा

देख बंद खिड़की

एक हूक सी सीने में उठता होगा 

पुर्जी रखी तो नहीं किसी कोने में 

डरते डरते खोजता होगा

इधर उधर मंडराता होगा 

आहिस्ता फिर झांकता होगा

मैं नहीं होऊंगी वहां 

फिर भी एक आवाज 

उसके कानों तक जाता होगा 

ब्याही गई या कहीं छुपाई गई

चुपके से किसी से पुछता होगा 

अब न कोई किस्से न कहानी 

पता नहीं वो अब कहां होगा

अपनों संग हंसता होगा 

या याद कर मुझे 

चुपके चुपके रोता होगा

वो जब भी इधर से गुज़रता होगा 

खिड़की की तरफ देखता होगा।


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