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डॉ. प्रदीप कुमार

Tragedy

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डॉ. प्रदीप कुमार

Tragedy

ज़रा संभलकर

ज़रा संभलकर

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तुम अपना खून-पसीना एक करके प्यार लिखोगे, 

वो अपनी हसरत पूरी करने को व्यापार लिख देगा, तुम उसकी मोहब्बत में बार-बार डूबोगे, 

वो पानी पर भी बेवफाई के किस्से चार लिख देगा।

उसकी जुदाई तुमसे सही न जाएगी, 

वो तुम्हारे कोमल स्पर्श को भी 

खंजर का वार लिख देगा, 

रूठना उसका तुमसे देखा न जाएगा, 

वो अपनी आंखों में गुस्से से अंगार लिख देगा।

बात जब चलेगी तो जाएगी दूर तलक, 

उसके किस्से को हर मशहूर अख़बार लिख देगा, तुम्हारे आंसू देख हर कोई रोएगा, 

उसके हुस्न को हर कोई गद्दार लिख देगा।

नशा दौलत का बुरा है सबको पता है, 

पर क्या कोई नशे में अपना घर-बार लिख देगा?

सदियों से परंपरा जो चली आ रही अनवरत, 

इस बार तो कोई यायावर उसपे 

पूर्ण-विराम लिख देगा।


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