मैनें खुद को महसूस किया है ...
मैनें खुद को महसूस किया है ...
मैंने खुद को महसूस किया है,
एक बंद कमरे में गहरे सन्नाटे की तरह,
किसी पुराने मकान के दरवाज़ों की तरह,
ज़ो मुद्दत से खुलने के लिए बेकरार हैं, कोई खोले तो सही ....
मैंने खुद को महसूस किया है, उन सूखे दरखतों में,
जिनके नीचे कोई बैठता ही नहीं,
उन पुरानी खिड़कियों की तरह
जो खुलती तो हैं, पर उनमें अंदर कोई झँकता ही नहीं ....
मैंने खुद को महसूस किया है, उस सूखे तालाब की तरह,
जिस पर से परिंदे गुजरते तो हैं, पर रुकते नहीं,
उस नाव के चप्पू की तरह, जिसके चटक जाने पर
छोड़ दिया माझी ने, सँवारने की जगह ....
मैंने खुद को महसूस किया है, हर उस अंधेरे कोने में
जहाँ तक रोशनी पहुँचती ही नहीं,
जिसे किसी दीए, किसी चिराग से अब उम्मीद नहीं ....
