तरंग
तरंग


मेरा मन समंदर है
जिसमें कई उछाले है
जिसमें कई तरंगें है
हर बार वह हिलोरे मारता है
वह सोचता कहीं ना कहीं किनारा है
जीवन एक पानी की धारा है
रूकना नहीं बह जाना है
प्रबल वेग से बहना है
एक दिन तो विराम मिलेगा
जीवन को अंजाम मिलेगा
यही सोच आगे बढ़ना है
रूकना नहीं ना झुकना है
कब तक रूकावट आएगी
कितना मुझे सताएगी
कहीं ना कहीं किनारा है
प्रभु का एक सहारा है।