छंद
छंद


तेरे नैनों में दिखे, मेरी ही तस्वीर।
कभी पूर्णिमा चंद्र सी, कभी विरह की पीर॥
कभी विरह की पीर, धड़कनें मुझसे कहती।
कभी प्रीति की डोर, बाँध कर सहमी रहती॥
दृग दर्पण में पुष्प, देखती सांझ सवेरे।
कर सोलह श्रृंगार, प्रीति में खोई तेरे॥
तेरे नैनों में दिखे, मेरी ही तस्वीर।
कभी पूर्णिमा चंद्र सी, कभी विरह की पीर॥
कभी विरह की पीर, धड़कनें मुझसे कहती।
कभी प्रीति की डोर, बाँध कर सहमी रहती॥
दृग दर्पण में पुष्प, देखती सांझ सवेरे।
कर सोलह श्रृंगार, प्रीति में खोई तेरे॥