चारदीवारी : वेदना नारी की
चारदीवारी : वेदना नारी की
रूह कैद़खाना
पाँव में बेड़ियां
बेरंग सा आशियाना
दर्द सिर्फ़ निभाना
ख़्वाहिशों पर पर्दा
रसोई से बतियाना
ज़ालिम था ज़माना
सती,जौहर
फ़िर भी बेहतर था,
यूँ पल पल दम घुटने से,
सांसों को मोहलत नहीं,
अरमानों की दौलत नहीं,
त्योहारों का बंजर मन
इंसानियत जमीं को खोजता,
दिल को मशाल में जलाना,
रौशनी की ललक,
गूंगी थी हसरतें,
बातूनी आँखें खामोश,
तकती थी हर राहें,
किसी के दामन में,
मिल जाये मुकद्दर,
एकाकी सूना मन
थोड़ा बहल जाये।