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Madan lal Rana

Tragedy

4  

Madan lal Rana

Tragedy

चालबाज मानवता

चालबाज मानवता

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मैंने क्या कुछ नहीं किया

तुम्हारे लिए,

बेइंतहा मोहब्बत की तुुझसे।

तेरी खुशी की खातिर

अपनी हर इच्छाओं का गला घोंंटकर,

तेरे बताए हर रास्ते पर

बेझिझक क़दम रखा और

गिरते संभलते तेरेेेे उसूलों का

दम भरते हुए तय किए अनगिनत सफर।

बदले में क्या दिया तूने ???

ऊंचेे-ऊंचे ख्वाब दिखाकर और

अपनी चमक-दमक से बरगलाकर

सिर्फ छला है तुमने मुुुझे।

अपनी जिन्दगी जीने का हक

मुझे भी था,

पर तूने सब्जबाग दिखाकर

मेरे अरमानों को चकनाचूर किया।

तेरेे खोखले आदर्शों और

उसूलों में कुछ नहीं रखा यहां ।

तेरी भावनाऐं

कौड़ियों के दाम बिकते हैं ,

गली-कूचों, चौक-चौराहों 

घरों-महलों और बाजारों में।

ये आज की दुनिया है

स्वार्थथपरस्त...!

यहां हर चीज की

कीमत आंकी जाती है

उसमें अपना नफा-नुकसान देखा जाता है

और तू चंद सासों के अलावा

मुझे क्या दे सकता है

बता ऐ "चालबाज मानवता!"



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