चाहता हूँ मैं
चाहता हूँ मैं
कोई रूठे ना चाहता हूँ मैं,
कोई छूटे ना चाहता हूँ मैं।
झुकना अगर जरूरी हो कभी
आप खड़े रहें झुक जाता हूँ मैं।
कोई रूठे ना चाहता हूँ मैं.....
चलते रहना मैने जाना था
रुकना ठहरना मुझे मना था।
आप पिछे हैं तो मैं सामने हूँ
कदम तेज़ करो, रुक जाता हूँ मैं।
कोई रूठे ना चाहता हूँ मैं....
एक बार झुका था आप के लिए
राहों में रुका था आप के लिए
ठहरना, ठहराव न बनजाए कहीँ
इसलिए फिर चलदेता हूँ मैं।
कोई रूठे ना चाहता हूँ मैं......
कोई लुटे ना चाहता हूँ मैं
कोई टूटे ना चाहता हूँ मैं
लूटजाने के बाद फिर से आबाद
होने का अनकही व्यथा हूँ मैं।
कोई रूठे ना चाहता हूँ मैं......
जब टूटता है पेड़ों से शाख कोई
या छूटता अपनों का साथ कहीँ
कौन जाने वो दर्द का पैमाना
आज तक सिसकता रोता हूँ मैं।
कोई रूठे ना चाहता हूँ मैं.......
आवाज़ कहाँ उन कराहों का
सिले होठों में दुबके आहों का
गुम हो चुके गम जिस सीने में
उस में सिसकता रिश्ता हूँ मैं।
कोई रूठे ना चाहता हूं मैं......