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Shabnam Parveen

Abstract

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Shabnam Parveen

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अजनबी

अजनबी

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मेरी तन्हाइयों में आ कर

मेरा साथ निभाते हो


मेरे घम के अंधेरे को

रोशन कर जाते हो


छुट चुकी थी जीने की चाह

मुझे फिर से तुम जीना सिखाते हो


ए अजनबी तुम कौन हो जो मुझ को

मुझ ही से मिलाते हो।


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