STORYMIRROR

Shabnam Parveen

Abstract

3  

Shabnam Parveen

Abstract

मेरा बचपन

मेरा बचपन

1 min
193

कभी माटी का घरौंदा बनाते 

तो कभी कागज़ की गुड़िया

कभी धूल की रोटी बनाते

तो कभी पत्तो की पुड़िया

कभी मां के दुपट्टे की साड़ी पहनना 

तो कभी उनकी सैंडल के लिए ज़िद्द करना


शायद कुछ यूहीं था मेरा बचपन।


हरी- लाल पन्नी में लिपटी मीठी गोलियां

अमरूद और आम वाले की वो छोटी तंग गलियां

कभी अपने पड़ोसी से चवन्नी की शर्त पर लड़ना

तो कभी उसी को दो रूपए वाली चॉकलेट ला कर देना


शायद कुछ यूहीं था मेरा बचपन।


कभी माटि के छोटे कलसी में पानी लाना

कभी बिना आग के चुल्हे में खाना बनाना

कभी चादर की दीवार और चटाई की छत बनाना

कभी सभी बच्चो के साथ उसी घर में सारा दिन बिताना


बस यूंही था मेरा बचपन।



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract