बुढ़ापा
बुढ़ापा
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यह खून के रिश्ते हैं, या पानी के बंधन,
नहीं अब दम बचा इतना, के इनको आजमाऊँ मैं।
मेरे बच्चे नहीं रहते हैं, मेरे साथ आज कल,
बची जो लोरियां मुझमें, अब किसको सुनाऊँ मैं।
इधर लकड़ी का फर्नीचर, उधर पत्थर की दीवारें,
किसी से बात करनी हो, तो किसको बुलाऊँ मैं।
मेरे हॉस्पिटल के बिल, जमा कर देते हैं बेटे,
है तकलीफ सूनापन, भला किसको बताऊँ मैं।
पुरानी अल्बम देखूँ, यादों को करूं ताजा,
पर दिन कितने लंबे हैं, इन्हें कैसे बिताऊं मैं।