"बसंती बेला"
"बसंती बेला"
चटकी कली, महकी गली, फैली सुगंध चहुं ओर है
मेरी अली, भटके अली, कलियों में मच रहा शोर है
बौराया मन, बेसुध सा तन, मस्ती में नाचे जैसे मोर है
केसरिया धरा, मन है भरा, जैसे कोई खींचे मेरी डोर है
इत, उत, फिरुं, जग से ना डरूं, है मगन मन चितचोर है
सतरंगी गगन, आ रहा फागुन, राधा संग माखनचोर है
मैं क्यूं मारी-मारी फिरूं, जग से डरूं, मन जैसे चोर है
अबके बसंत आये वो फिर, अंकों में भर रहा जोर है।