""धूप"
""धूप"
झरोखे से छनकर आती हुई ये धूप
अपना सा कुछ गुनगुनाती हुई ये धूप
जैसे हो कुछ आधा सा आधा पूरा सा
ये अलहदा अहसास कराती हुयी ये धूप
अंतर्मन में कोलाहल सा मचाती हुई धूप
बाहर से शांत अनवरत चमचमाती हुई धूप
सांसों की तरह पल पल घटती जाती ये धूप
नया सवेरा लाने को हर शाम सो जाती धूप
जैसे हो जीवन का पूरा सार समझाती धूप
कुछ कानों में हमारे जैसे फुसफुसाती ये धूप
जी लो आज कल नहीं होगा समझाती धूप........
