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बस दूर से निहार लेना

बस दूर से निहार लेना

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मैं अगर आऊँँ तेरी गलियों में

बारिश बनकर तो तू हाथों में

उसकी बूँद लेकर

खुद को सँवार लेना,


और जब मैं घटा की फुहार बन

गुज़रने लगूंं तो बस तू

मुझे हल्की आवाज़ से पुकार लेना,

अबकी बार भी तुम मुझे

बस दूर से निहार लेना।


मेरे जाने के बाद

अगर चाहो तुम तो

बेवफाई के लिबास में

गैरों से खत हज़ार लेना,


मगर जब तुम्हें बेकरारी का

आलम सताए तो तुम

बूँदों से नदी बनने का

सबर उधार लेना,

अबकी बार भी तुम मुझे

बस दूर से निहार लेना।


पर जब बारिश थमने के बाद

दीदार हो हमारा तो तुम

बूँदों के सारे कर्ज़ उतार देना,

मगर कुछ झिझक के साथ पलकें झुकाकर

तुम मुझे स्वीकार लेना,

अबकी बार भी तुम मुझे

बस दूर से निहार लेना।

अबकी बार भी तुम मुझे

बस दूर से निहार लेना...!


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