पिता
पिता
बिन मांगे ही वो सच्चे दिल से दुआ देता है,
बड़ी से बड़ी गलती भी हँस कर भुला देता है।
जो कहता नहीं फिरता हर दुख दुनिया से,
बस अँधेरे में अपनी पलकें भिगो लेता है।
कसर नहीं छोड़ता अपनों की ज़रूरत पूरी करने में,
वो इसी जद्दोजहद में अपनी पूरी उम्र गंवा देता है।
छुपा कर आँसू अपनी आँखों में, होंठों पर हँसी
रख कर,बड़ी होशियारी से वो सबको दगा देता है।
मुश्किल हैं काँटों की राह में और भी जिंदगी ले कर चलना,
पर उस काँटें को वो इंसान मेहनत से मखमल बना देता हैं।
कमाई लूटा देता हैं बच्चों पर बिना किसी शर्त के,
आखिर यह 'पिता' किस मिट्टी का बना होता है।
शब्दों में जाहिर नहीं हो सकता यह अहसास जिंदगी का,
वह नन्हें से बच्चे को किस कदर इंसान बना देता है।
जिंदगी में राहत हो या हो लम्हा तकलीफ भरा,
वो हर मुश्किल से हमें लड़ना सिखा देता है।
क़ीमत तब नहीं समझते लोग जब वो जिंदा रहता है,
मर कर वो हर एक को अपनी क़ीमत समझा देता है।।