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Rahul Kumar Rajak

Inspirational

4.0  

Rahul Kumar Rajak

Inspirational

कर्म ही सबका भाग्य विधाता

कर्म ही सबका भाग्य विधाता

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कुछ बात कही थी मानो उसने,

पग मेरे सही मार्ग पर लाने को,

छल - छल कर के अश्रु बहे थे,

घर वापस लौट कर जाने को।।


आँख फेर कर मुझसे सारे,

सब अपने धुन में मग्न होते,

मैं शून्य बनकर देख रहा था,

कैसे रिश्ते सारे नग्न होते।।


सदियों से बैठे उम्मीदों की कश्ती पर,

नैय्या मेरी आज भी बीच खड़ी थी,

मोह,गोद,बचपन,सुकून ये सारे शब्द,

मेरे लिए बस शब्दों की एक कड़ी थी।।


बिखर गया था मैं भी जैसे,

पतझड़ के मौसम का पत्ता,

पर सीख मिली थी मुझको यह भी,

कि जिसकी माटी उसी का सत्ता।।


पर सीख लिया हैं मैंने भी अब,

आँधी-तूफानों से बातें करना,

खुद से खुद को आगे करना,

और हर घड़ी खुद से ही लड़ना।।


कर्म ही निश्चित करता सब कुछ,

कर्म ही सुख-दुख का पाठ पढ़ाता,

कर्म करो तुम सदा उच्चतम,

कर्म ही सबका हैं विधाता।।



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