फिर भी लकड़ियाँ बिकती रहीं
फिर भी लकड़ियाँ बिकती रहीं
पास के गाँव से उठा धुआँ,
फिर भी लकड़ियाँ बिकती रहीं।
उसमें लोगों ने दी हवा,
फिर भी लकड़ियाँ बिकती रहीं।
श्याम हो गया आसमान,
फिर भी लकड़ियाँ बिकती रहीं।
धुँध में खो गया ये जहाँ,
फिर भी लकड़ियाँ बिकती रहीं।
खाँसते रहे सब बेगुनाह,
फिर भी लकड़ियाँ बिकती रहीं।
बुज़ुर्गों ने खुद की की दवा,
फिर भी लकड़ियाँ बिकती रहीं।
वृक्ष करते रहे इल्तिजा़,
फिर भी लकड़ियाँ बिकती रहीं।
सभी पशुओं ने दी सदा,
फिर भी लकड़ियाँ बिकती रहीं।
ख़त्म हो गई ये सारी दास्तान,
फिर भी लकड़ियाँ बिकती रहीं।
