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Rahul Kumar Rajak

Tragedy

3.0  

Rahul Kumar Rajak

Tragedy

हैवानियत की हद

हैवानियत की हद

1 min
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साँवला बदन,भूरी आँखें,सर पे बाल नहीं थे उसके,

उसकी बेमौत मौत की गई तब भी कोई सवाल नहीं थे उसके।


हाँ शिकन तो थी उसके चेहरे पर बेचारी बेजुबान कुछ कह न पाई होगी,

रोती हुई खून के आँसूओं से भींगी होगी पर बेशक ये सह न पाई होगी।


तुम सब ने उसका ज़नाजा निकालना भी मुनासिब न समझा,

किसी गंदी नाली नदी तालाब में फेंक दिया उसे,

क्या तुमने उसे अपनाने के काबिल भी न समझा।


इतनी छोटी उम्र में उसने दरिंदों को जान लिया था,

अपने घर वालों की हकीकत कों बारीकी से पहचान लिया था,

वो ये भी सोचती होगी कि काश इस संसार में जाने का मेरा कोई सपना नहीं होता,

इस मतलबी दुनिया में मैं अकेले ही रहती मेरा कोई अपना नहीं होता।


"अब वो लड़की कहती हैं कि" -

मैं डरती हूँ अपनों से या फिर डरती हूँ सपनों से,

ये लोग लड़कों के जन्म पे तो खुशी मनाते हैं,

तो फिर क्यों लड़की के जन्म पे खुदकुशी मनाते हैं,

क्या इनका अंदर का गुरुर इन्हें धितकारता नहीं हैं,

वो चले जा रहें हैं दरिंदगी की राह पर कोई क्यों उन्हें पुकारता नहीं हैं।


मगर अब भी कोई सवाल नहीं हैं मेरा,

इस बेगैरत संसार में जाने का कोई ख्याल नहीं हैं मेरा,

बस चाहती हूँ वो पुत्र प्रेमी अपने पुत्र की चाहत का कुछ तो सौदा कर ले

और अपनी नस्ल बढ़ाने के लिए अपने लड़कों द्वारा ही बच्चे पैदा कर ले।।


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