बरखुरदार
बरखुरदार


बरखुरदार,
मौसम भी बदलते हैं,
इंसान भी चेहरे पढ़ते हैं,
तुम क्यों उदास से रहते हो,
क्यों चुप हो, अब बतलाओ भी ?
कहते हो कि मैं जुदा हूँ,
लगते तो मेरे जैसे हो,
इंसान हो, समझना आसान नहीं,
मानता हूँ तुम्हें कुछ याद नहीं।
फिर किस बात की है नाराज़गी,
अब तो बस ये पल ही है,
कल क्या होगा, कौन जाने !
तुम क्यों कल में जी रहे ?
अब ज़रा मुस्कराओ भी,
देख ज़रा खिलखिलाओ भी,
लो बारिश भी अब हँसने लगी,
तुम क्यों गुमसुम बैठे हो।
चलो कहीं साथ चलें,
सही - गलत से परे,
जहाँ सच हो और आज़ादी हो,
चलो तुम्हारे बचपन में !
लेकर आते हैं उस बच्चे को,
खो बैठे जिसको तुम कहीं,
पर डर है मुझको कि देखकर,
अपनी ही परछाई,
तुम कहीं रो न दो !