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बंटवारा

बंटवारा

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बेशरम से बढ़ गए ये,

धर्म के जंगल यहाँ,

टोपी में साफों में वोट,

कौम में ना बंटने लगे,

तो अच्छा।


हर साल सा गुजर ही गया,

लो एक साल फिर,

कल के लिए कुछ,

विरासत में लिख दें नया,

तो अच्छा।


हम साफा पहनेंगे तुम पहनना,

शौक से अपनी टोपी,

मजहब के खरीदारों में,

यह देश ना बिक जाए तो अच्छा।


कल वो फिर निकलेगा,

नए साल में नई बुलंदी के साथ,

वो तो सूरज है हम सब,

उसके नूर बन जाए तो अच्छा।


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