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varsha Gujrati

Tragedy

4  

varsha Gujrati

Tragedy

बलात्कार

बलात्कार

2 mins
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कितना अच्छा हैं ये हमारा आधुनिक समाज ... जिस में ..

हम शिष्टाचार .. नैतिकता .. को भूलते जा रहे हैं ...

कितना संस्कारी हैं हमारा समाज जहां हम हर बात के लिए आवाज उठा सकते हैं पर बस केवल आवाज .... जहां हम बदलाव तो चाहते हैं ... पर अपने लिए नही दुसरो के लिए .....


स्त्री जाति का सम्मान होना चाहिए ... जो हम लोग गर्व से लिखते हैं ... गर्व से सहमति भी प्रदान करते हैं ..... पर सिर्फ ओर सिर्फ बोलते हैं .... 

क्योंकि कुछ देर बाद हम उसी स्त्री के साथ खेलने लग जाते हैं .... कभी शब्दों के बाण छोडकर .... कभी नजरों से निवस्त्र कर के .... 


मासूम बच्चियों पर अब दुलार नही आता ... अब उनको नोचा जाता हैं .... 


डरती हैं माएं अब .... कोख में बेटी ना हो ... फर्क नही बेटा-बेटी में ... पर सोचती हैं समाज के वहशीपन से मेरी कोख का सामना ना हो ....


हर नजर अब वहशी लगती हैं ... इसलिए माएं अब हर बेटी को कैद रखती हैं .... 


ये मेरा आधुनिक समाज हैं जहां एक बूढी औरत भी अकेले घर से निकलने में डरती हैं ..... 

हर रिश्ता अब कटघरे में खडा हुआ लगता हैं ..... भीड़ में भी राहों पर चलने से डर लगता है 

कैसा हैं... बे-हिसाब तरक्की करता हुआ हमारा समाज .....

अब तो जिस्म के निशान का भी सबूत .... कागज पर लिखकर देना पड़ता है .......


जब-जब लुटी गई हैं .... बेटियां ,

उंगली उठी उनके ही किरदार पर ....

कुरता पर अब बस होता बवाल है

समाज का बस ये ही स्वाभिमान है .....


सबूत अपने जिस्म का मांगता कानून ,

हर जख्म पर .. जख्म लगाता समाज ....

बना शर्मसार फिर वही खोखला कानून ,

अब तो कलम भी होती नजरअंदाज हैं .....


मर्यादाएं भी अब रह गई मजाक बनकर ,

चीर-फाड़ ही बन गए ... संस्कार बनकर ....

दुशासन बन बैठा हैं ... हर इंसान यहां ,

कभी कानून बनकर कभी सवाल बनकर ....


नारी के आपमान का ... कोई अंत नही ,

बनावटी इंसान का कैसा दोगलापन है..

ईश्वर भी हो रहा ... नजरों में शर्मसार ,

बनाया था इंसान ... बन गया ये हैवान है...



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