बज़्म-ए-यारा
बज़्म-ए-यारा
ब़ज्म-ए-यारा सजे हुए तो एक ज़माना हो गया,
खुलकर जब जीए थे हम एक ज़माना हो गया,
काश! मिल जाए फिर वही दोस्ती की फुलवारी,
कि दोस्तों से मिले हुए तो एक ज़माना हो गया।
याद है इन आँखों को जब दोस्त मिलते थे सारे,
हल्ला गुल्ला, मस्ती मज़ाक के पल होते थे प्यारे,
दुनिया की उलझन से दूर थी एक अपनी दुनिया,
ग़म का जहाँ नाम नहीं, खुशियों की होती बहारें।
बिछड़े थे जब दोस्त वादा किया मिलते रहेंगे हम,
पर अब सब अपनी-अपनी ज़िंदगी में हो गए गुम,
कहाँ फुर्सत दोस्तों को कि सजा लें बज़्म-ए-यारा,
अब तो बस एक दूजे को याद कर आँखें होती नम।
कभी कभार हो जाती हैं बातें पर मन नहीं भरता है,
बीते किस्सों को याद कर ही अब तो दिन कटता है,
काश कि वक्त ले जाए फिर एक बार उसी मोड़ पर,
दोस्ती का वो ख़ूबसूरत लम्हा पल पल याद आता है।