बिन फेरे, हम तेरे
बिन फेरे, हम तेरे
कुछ रिश्ते जुड़े हुए होते हैं केवल,
प्रेम और अपनेपन की डोर से।
निःस्वार्थ, निष्काम प्रेम से पगे चलते हुए,
जीवनपर्यंत इस ओर व उस ओर से।
बिना कहे ही जान लेते हैं वो,
एक - दूसरे की मन की बात।
जहां मिलन से भी गहरी होती है,
विरह में जलती और पिघलती रात।
विवशताओं से बंध नहीं पाते वो,
इस समाज और संसार के बन्धन में।
"बिन फेरे, हम तेरे" के बेनाम बंधन में,
बंधकर जलते रहते हैं मन के प्रांगण में।
राधा-कृष्ण से पावन, जगतीय दिखावे से दूर,
जी रहे होते हैं बस एक-दूसरे के लिये।
जन्मों की चिर प्रतीक्षा में लीन सदियों की,
दूरियां तय कर रहे होते हैं एक-दूसरे के लिए!

