बेरोजगार
बेरोजगार
अच्छे विश्वविद्यालय से
प्रथम श्रेणी उतीर्ण,
अनगिनत डिग्रियों से लैस,
प्रमाण-पत्रों से भरी
हुई कई फाइलें !!!!
स्नातक, परास्नातक
अध्यापक पात्रता
परीक्षा को भी
कर चुका है वो पास
ना रोजगार, ना साथी
जैसे हो दिनकर उदास
एक अदद रोज़गार के लिए
कितने खाक
छान चुका है वो
घिस चुकी हैं कई
जोड़ियाँ जूतों की
पैरों के छालों को
खुद से छिपा
चल रहा है वो
अब कोई मनमानी नहीं
जीन्स भी लगती
अब पुरानी नहीं
मां-बाप से वो
पहले वाली ज़िद नहीं
'बाप के होटल' में खा रहे हो
इस ताने से उकता गया है वो
जो है, जितना है
उतना में ही रहना
सीख गया है वो
माथे पर उच्च शिक्षा का
तिलक लगाए
घर में घुट घुट कर
जीना सीख गया है वो
हर हफ्ते रोज़गार समाचार के
पन्ने पलटता
नये अवसरों की तलाश में
पसीने से लथपथ हो
जीवन के अग्निपथ पर
चल रहा है वो
हर निवाला लगने लगा है
उसको अब हलकान,
जूझ रहा है वह
पाने को अवसर
और सम्मान
दोषी है कौन,
उसकी इस हालत के लिए
यह व्यवस्था या फिर
स्वयं यह समाज !!!!!