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Alka Soni

Inspirational Others

3.6  

Alka Soni

Inspirational Others

ये कविताएं

ये कविताएं

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59



कभी लगता है मानों ये कविताएं

कविताएं नहीं

 मेरी सहेली हैं

बचपन से ही मेरे संग-संग

 लुका-छिपी खेली हैं

मेरे मन का भी हर भाव

ज्योंगर्म खर हुई रोटी पररखे

मक्खन की तरह पिघलकर

खुद ब खुदउसमें समाहित होता चला जाता है

शब्द दर शब्द सहजता से

 कविता में ढलता चला जाता है

बड़ी निश्छल सीरहती है

मेरे साथ वहन वो सत्कार चाहती है

न वो कोई श्रृंगार चाहती है

श्रद्धा में गुंथे 

भाव-पुष्प का इक हार चाहती है।



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