STORYMIRROR

Alka Soni

Abstract

3  

Alka Soni

Abstract

* बौनी उड़ान *

* बौनी उड़ान *

1 min
214

और, और की चाहत में,

आज का इंसान उड़ता ही

जा रहा है आकांक्षाओं के

आकाश में

ऊपर और ऊपर।


कितने आसमान पार किये,

कुछ बाकी है अभी भी।

हर पल बढ़ती ऊंचाई के साथ,

धुंधली पड़ती जा रही है

उसकी जमीन

उसकी महत्वाकांक्षाएं


उसके अपने

सब कुछ छूटता ही,

जा रहा है उससे।

वो पहुँच जाना चाहता है,

उस ऊंचाई तक जहां,

नहीं गया हो कोईउससे पहले 


क्या पायेगा वो,

वहाँ जाकर,

सब तो छोड़ आया।


जीवन को मधुरता देते तत्व,

रह गए कहीं पीछे।

अब वो पछता रहा है,

अपनी इस " बौनी उड़ान " पर

जिसका कोई अस्तित्व नहीं

जिसका कोइ भविष्य नहीं।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract