राखी
राखी
गोटों से सजी राखी
सितारों से सजी राखी
चाँदी और सोने के
तारों से भी
बिंधी थी राखी
हर किरदार को अपने
अंदर समाती
जा रही थी राखी
आधुनिकता की दौड़ में
अपनी महत्ता को
बचाये रखी थी राखी
रक्षा हो भाई की
रक्षा हो देश की
रक्षा हो सृष्टि की
रक्षा हो सजग दृष्टि की
इसलिए तो मनाई
जा रही थी राखी
हर साल बेटियों को
बुलाती थी राखी
मायके की राह
दिखाती थी राखी
स्त्री-पुरूष के बीच
बन सकता है एक
पावन रिश्ता, इसकी
याद दिलाती थी राखी
राखी आएगी इस बार भी
अपने नियत समय पर
लेकिन मायके की राहों की
अब की याद नहीं
दिलाएगी राखी
मेंहदी की सुंगध से
सनकर हाथों में
माना नहीं
बंध पाएगी राखी
धागा ही बन जायेगा
रक्षासूत्र भाई का
सजेगा बनकर राखी
वही कलाई का
जो जहां हैं मांग लेंगे
दुआ एक दूसरे के लिए
इस तरह निभाएंगे
वचन हम राखी का।
