बिखराव
बिखराव
तुम और मैं अब हम नहीं रहे
रहते है साथ-साथ अब भी
मगर अब साथ नहीं रहे
हाँ बातें अब भी होती है
पर बातों में वो बात नहीं
शिकायतों की कोई लिस्ट नहीं
मुहब्बत की कोई फेहरिस्त नहीं
अब बस चर्चा होती है
कुछ बिगड़े हालातों पर
और कुछ बिखरे जज्बातों पर
कैसा बदलाव ये आया है
खुद को हमने ये मंजर दिखलाया है
जले हुए कुछ ख्वाबों पर
तारिखें लिख आए है
बस कहने को है साथ
मगर साथ कहाँ रह पाए है...