प्रेम निवेदन
प्रेम निवेदन


अंतर्मन के भावों का, एक गुलदस्ता बन जाना तुम।
मेरे शब्दों में ढलकर, एक कविता बन जाना तुम।।
प्रवाह भाव से मुक्त हो, सहज सतत बन जाना तुम।
सागर के गहरे तल जैसे, गहन बन जाना तुम।।
मेरे भाग्य का दिव्य तत्व सा, सौभाग्य चंदन बन जाना तुम।
सृष्टि सुवास में मलय पवन सा, मेरे हृदय में बह जाना तुम।।
वर्ण, व्याकरण, रस, छंद सभी का वृहत्त युग्म बन जाना तुम।
सरस रसधार माधुर्य सदृश, मेरे जीवन में घुल जाना तुम।।
प्रखर प्रवाहित अविरल, वाड्गमयी सा बन जाना तुम।।
मेरी सजल लेखनी का, कोई नवगीत बन जाना तुम।।
अतृप्त अधर मधु की क्षुद्र वासना नहीं प्रिये, यह प्रेम निवेदन है ।
मैं बन जाऊँ राधा तेरी, कृष्ण मेरे बन जाना तुम।।
अंतर्मन के भावों का, एक गुलदस्ता बन जाना तुम।
मेरे शब्दों में ढलकर, एक कविता बन जाना तुम।।