मेरा पहला प्रेम
मेरा पहला प्रेम
हाँ हुआ था मुझे भी पहली बार प्रेम
हुई थी मैं मग्न किसी की बातों में
चाहती थी ताउम्र उसका साथ
जीना चाहती थी प्रेम का हर एक पल।
जैसे बैचेन हो उठते हैं अक्सर
प्रेमी युगल जरा सी विरहन से
वैसे ही बैचेन हो जाती थी मैं भी
उसके आँखों से ओझल होने पर।
दूर आती हुई उसकी एक परछाई भी
कर देती थी अंतर्मन को आह्लादित
माथे पर उसके चुम्बनों का एहसास
आज भी बिल्कुल वैसा ही है।
हाँ हुआ था मुझे भी पहली बार प्रेम
उस अनन्त सुन्दरी से
जिसने दिया मुझे जन्म
बितायी अपनी अनगिनत रातें
बस यूँ ही जाग कर मेरे लिए।
हो जाती थी बैचेन मेरी जरा सी
लड़खड़ाई आवाज़ पर और
सहेज कर रखना चाहती थी मुझे स्वयं में
किसी बेशकीमती खजाने की तरह।
बिना किए दो टूक बात मुझसे
कहाँ गुजरता था उसका भी एक दिन
प्रेम करते थे हम दोनों एक-दूसरे से
हो जाते थे परिपूर्ण जब भी मिलते थे।
अब जब वो जा चुकी है मुझसे दूर
तो यादें करती हैं डाकिये का काम
अब मुझे भी जिंदगी का
रस पीना है, हाँ, मुझे जीना है।
हर शाम छोड़ जाती हैं
भावरूपी प्रेमपत्र और इस तरह,
मेरी आँखों में जीवन्त हो उठता है
मेरा पहला प्रेम .....।।