स्वयंसिद्धा
स्वयंसिद्धा
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अपनों से , उन सब सपनों से
जीवन के हर संगठनों से
हर बार अलग कर दी जाओगी
बेटी, तुम छली जाओगी।
न शस्त्रों से ना शब्दों से
होगा वार कोई ,
फिर भी शोषित की जाओगी
बेटी, तुम छली जाओगी।
देकर अपना सर्वस्व
मन में स्थान ना पाओगी
धागे सा भी फर्क दिखा तो
कलंकिनी कहलाओगी
बेटी,तुम छली जाओगी।
मौन बनेगा अब वो ऐसा अस्त्र
कि घाव दिखा ना पाओगी
अश्रुपूरित नयनों में
सब धुंधला ही पाओगी
बेटी, तुम छली जाओगी।
सब कहेगें स्त्री हो , कोमल हो
किन्तु पाषाण बने रहना
चाहे कितनी भी छली जाओ
पर स्वयं को छलनी मत करना
जो रही अडिग सत्य पथ पर
तो निश्चय ही स्वयंसिद्धा कहलाओगी।