आपदा..!
आपदा..!
बहुत कर ली अनदेखी, बहुत किया उपहास;
बदले में प्रकृति ने दिया, ताऊ ते और यास।
कभी कोरोना का क़हर कभी फ़ंगस की यारी।
वर्षों की अर्जित पूँजी, सब ले गई ये बीमारी॥
अब भी अगर ना संभलें हम,ना रोके मनमानी,
अगले पल नियति ही, करेगी रासि परिहास॥
