आस की डोर
आस की डोर
दिल के धागे
दिल से बंधे
टूटते जा रहे हैं
पेड़ के तने से बांधू
या खिड़की से झांकते
चांद की कलाई पर
कहां बांधू
अपनी आस की डोर जो
सांस आ जाये
जाती हुई सांस को
धागों के जोड़ अब
और तोड़ मत खुद को
आकर बंध जा मेरी
रिश्तों की उधड़ी हुई
सिलाई से।
