"अपने -पराए"
"अपने -पराए"
कौन हैं अपने कौन पराए
वक़्त ही सबके रंग दिखाये,
कच्चे रंग में रंगे रिश्ते
समय के साथ फीके पड़ जाए,
कौन है अपने कौन पराए
वक़्त ही सबके रंग दिखाये।
रिश्तों के वो तौल तराज़ू
कठिन काल में हल्का- सा,
रक़्त बद्ध होते हैं अपने
ये है लगता छल- सा,
हर सुख की वृद्धि हो जाए
हर अपने सच्चे हो जाए,
लेकिन अपनों का अपनापन
कठिन काल में ही दर्शाये,
कौन हैं अपने कौन पराए
वक़्त ही सबके रंग दिखाये।
ठोकरें लगे तो रूह से पहचान हो जाए
उम्मीदों की हकीकत भी कुछ यूँ जवाँ हो जाए,
हाल- ए -दिल हम लिखे और कलम महान हो जाए
बिन झरोखे बंद कमरों में रोशनी कैसे आए,
बिन अपनों के जिंदगी श्मशान बन जाए
उन रिश्तों का बोझ क्यों लिए चलें *२
जो वक़्त देखकर ' मेहमान ' हो जाए
कौन हैं अपने कौन पराये
वक़्त ही सबके रंग दिखाये ।।
" अगर हिंदू को मंदिर में रहमान नज़र आए
अगर मस्जिद में मुल्ला को राम नज़र आए
सूरत ही बदल जाए इस दुनिया की अगर
इंसान को - इंसान में - इंसान नज़र आए "