भूख
भूख
Prompt-16
भूख ले आती है सड़कों पर
बाजारों में गलियारों में
ये नहीं जानती मज़हब को
फर्क नहीं कर पाती रोटी में
रमेश की है या रहीम की
ये तो बस ठंडी करना चाहती है
पेट में जल रही आग को
जो सोने नहीं देती कई कई रातें
जो भटकाती है दर-दर
बाज़ार, चौराहों और कचरे के ढेरों पर
ये बिना घड़ी अलार्म की तरह
उठाती है नींद से बार-बार
कभी राम सिर पर कचरा ढोता है
दूसरों के सपने सजाने
कभी मुन्नी हो जाती है शिकार
एक आइसक्रीम में पेट की आग बुझाने
ये कर देती है दिमाग को शुन्य
और आंतों को तेज
जो बासा, कूसा, सड़ा, गला
सब कुछ पचाने को तैयार होती हैं
जो धंसी आंखों में में चमक और
जीभ में ले आतीं हैं पानी
ये ले जाती है मेट्रो, लाल बत्ती,
मंदिर, मस्जिद के किनारे फैलाने हाथ
भूख से बार-बार साक्षात्कार कराने
ये भूख से ग्रसित......
जिंदगी भर गमों को ढोते हैं
घिसटते हैं और रोते हैं
पेट की भूख मिटाने खुद को और
अपने सपनों को ना जाने कितनी बार खोते हैं।
