भूतों से गपशप
भूतों से गपशप
भूत है क्या? अतीत, बीता काल भूत नाम ।
मेरी दादी कभी हो, नाराज करें कुछ काम ।
बड़बड़ाती अपने में ही खो रहतीं बोलती ।
मन गिरह खोल कह बात स्व, हमें तोलतीं।
पूछने पर कहतीं भूतों से करती हूं बातें,
एकाकी जीवन भी भूत सी जिन्दगी होते ।
अकेलेपन में अपने से कभी हंसते-रोते
आज यही हाल सबका, क्रोध भूत होते।
बड़े से खाली घरों में 1भूत या 2 भूत दिखें
जा घर से, स्वजन न लौटें, कैसी तकदीर लिखें।
रही-सही कोर-कसर इंटरनेट ने पूरी की,
बच्चे, जवान लगा कान हेडफोन , राह ली।
कर गपशप हंसते-गाते जिन्दगी खोई सी,
दिनचर्या भी रात्रि जागरण है भुतिया सी।
ताजी हवा न बाहर किसी से मिलना -जुलना,
अब कोई बागों में देखे क्या कली खिलना?
भूतों से बना पोज, अनोखे सजा मुखड़े,
नहीं सन्तुष्टि, संवेदना, संयम, अधीर से उखड़ें
न भोजन की सुध, न ही संस्कार मर्यादा,
बीमारी ऐसी घेरें मानो लगी है भूतबाधा।
बचपन में दादी बतलातीं रात में भूतवास
ब्रह्म मुहूर्त बेला देव (सद्बुद्धि) करे निवास
हुयी कुंठित भूतों सी दुर्बुद्धि ये गपशप
सभी की हो रही अतृप्त वासना छपाछप ।
