भूत महल
भूत महल
देखो कोई आया रे,
अंधरा घना छाया रे,
सन्नाटा चारों ओर,
और,
एक घुंघरू की आवाज़,
छम.. छम.. छम..
भय का माहौल,
कौन हो सकता?,
इस अमावस्या की रात में!,
अभी सोच रहा था ,
इतने में बारिश हुई,
फिर से आवाज़,
अब घर में,
मेरे रसीले होठों को,
छुकर देख,
मेरे बलमा ... मेरी जान...
आज ले जाने वाली,
कसम से,
भयभीत,
कांपता,
अपनी छत पर,
दौड़ा......
फिर क्या?,
बस एक छलांग,
और खेल खल्लास,
निकल पड़ा,
भूतनी संग,
भूतनाथ बनकर,
दगा जो,
पहले दिया था,
आज संग संग,
भूत महल में!!!,