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सोनी गुप्ता

Tragedy Others

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सोनी गुप्ता

Tragedy Others

भूख

भूख

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भूख से लड़ता 

वो इंसान तड़प रहा, 

किसी ढाबे के अंदर ताकता,

फिर कहीं छिप जाता, 

मेरी नजर पड़ी जब उस पर, 

देखा कूड़े के ढेर पर बैठा 

कुछ चुन-चुनकर खा रहा था I


मैं उसकी तरफ बढ़ा, 

पर ये क्या मुझे देखते ही, 

वो तो जैसे गायब ही हो गया, 

जाने किस गली में घुसा, 

मुझे लगा मेरा मुझसे ही, 

जैसे वहाँ कुछ खो-सा रहा था I


घर पहुँचा पर रह-रहकर , 

ख्याल उसका ही आया, 

धुंधला-सा चेहरा नज़रों के आगे, 

रात को खाते समय भी, 

लगा जैसे मैं उसका निवाला खा रहा था I


आज फिर सुबह- सुबह ही 

निकल पड़ा उसकी तलाश में, 

फिर उसी ढाबे के पास ,

ढूँढ रही थी निगाहें फिर उसी गली में, 

छोटे-छोटे बच्चे झोला उठाये, 

इसी ओर बढ़ रहे थे, 

पर मेरी निगाहें कुछ और ही तलाश रही थीI


जाने कबसे ये बच्चे भूखे थे, 

तन पर कोई कपड़ा नहीं, 

पर मुस्कुरा रहे जैसे कोई गम नहीं, 

अंतड़ियों से झांकता शरीर

उन बच्चों का देह बहुत कुछ कह रहा था I


पता चला पास की झुग्गी से हैं, 

रोज सबेरे कूड़ा बीनते हैं, 

और उस कूड़े में ही भोजन ढूँढ लेते हैं, 

कैसी विडम्बना है, 

मैंने जब कुछ पूछना चाहा, 

मुझसे आंखें चुराने लगे, 

भूख से वो इतना मजबूर हो रहा था I


ये भूख जो जिस्म को खाने को आतुर, 

भूख जिसका कोई रंग नहीं रूप नहीं, 

यह तो पापी पेट है, 

जो किसी की सुनता कहाँ है, 

रोशनी की जगमगाहट में, 

एक कोना ऐसा भी है, 

जहाँ सिर्फ अंधेरा ही अंधेरा है,

और उस अंधेरे में ही वो रोशनी ढूंढ रहा थाI



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