भूख...
भूख...
वो चोर नहीं था
खुद की बेबसी पर उसका जोर नहीं था।
वो अनाथ था
इसलिए समाज मे भी उसका कोई और नहीं था।
लाचारी का मारा था
छोटा सा बालक वो भूख से तड़पता जा रहा था।
रोटी से उसका नाता था
अन्न के लिए वो दर-दर भटकता जाता था।
पेट की आग थी
मिटाने के लिए आँखें बेगानों से भी लगाती आस थी।
उसका कोई ठोर नहीं था
मिटा दे जो भूख वही सगा-संबंधी और उसका दोस्त था।
इक रोटी का इनाम मिला
एवज मे उस बालक ने होटल पे मजदूरी वाला काम किया।
वो कँहा से आया
इस समाज से आया अनदेखा और नजर अंदाज़ किया साया।
कौन था वो,
वो कोई चोर नहीं था भूख पर उसका कोई जोर नहीं था।।