भरोसे की दुकान
भरोसे की दुकान


बरसों की भरोसे की दुकान टूट गई है
ज़माने के मतलबी रिश्तों से रूठ गई है
अब भरोसे शब्द से, भरोसा उठ गया है,
खुद की सांसें, खुद से झूठ बोल गई है
विश्वास की दुनिया, विश्वासवालों से ही,
भरी महफ़िल में सरेआम लूट गई है
हम विश्वास में, विश्वास में ही रह गये हैं,
अपने लोगों से जिंदगी भूत बन गई है
बरसों की भरोसे की दुकान टूट गई है
वो आज हमे पे इल्जाम लगाने लगे हैं,
जिनकी मेरी वजह से जिंदगी कूल हुई है
भरोसा टूटने की वजह, अपनों का दगा है,
बिना बरसात उन्होंने हमें सूखे में ठगा है,
यकीन -यकीन में जिंदगी मेरी सूख गई है
फिर भी तू रख खुद पे यकीं अटूट साखी,
इससे टूटी कश्ती भी कोहिनूर बन गई है
बरसों की भरोसे की दुकान चाहे टूट गई है
खुद पे यकीं से जिंदगी मीठे अंगूर बन गई है।