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Prafulla Kumar Tripathi

Drama Action

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Prafulla Kumar Tripathi

Drama Action

भोर !

भोर !

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छंटा रात का घना अंधेरा

देखो भोर सुहानी आई ।

लेकिन जीवन तो कल जैसा ही

अंधा कुंआ और है खाई !


पंछी कलरव गान सुनाते

शांत चित्त मन को हैैंं भाते।

हरकारे अख़बार बांटते

दुनियां को घर घर पहुंंचाते !


'शुुकवा' तारा फिर मुस्काया

मौन मधुर हो हाथ हिलाया ।

कोयल उठी लिए सुर तान

छोड़ दुुुखोंं को सुन ले गान !


गौरैया का शुरु फुदकना

चलो डाल देें उनका दाना ।

हौले हौले हवा चल उठी

सांंसोंं का अदभुत मुस्काना !


रात घनी फिर फिर आएगी

व्यथा वेदना फिर लााएगी ।

फिर हम आस लगा बैठेंंगे

भोर ! जरा जल्दी आ जाना !


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