भोर !
भोर !
छंटा रात का घना अंधेरा
देखो भोर सुहानी आई ।
लेकिन जीवन तो कल जैसा ही
अंधा कुंआ और है खाई !
पंछी कलरव गान सुनाते
शांत चित्त मन को हैैंं भाते।
हरकारे अख़बार बांटते
दुनियां को घर घर पहुंंचाते !
'शुुकवा' तारा फिर मुस्काया
मौन मधुर हो हाथ हिलाया ।
कोयल उठी लिए सुर तान
छोड़ दुुुखोंं को सुन ले गान !
गौरैया का शुरु फुदकना
चलो डाल देें उनका दाना ।
हौले हौले हवा चल उठी
सांंसोंं का अदभुत मुस्काना !
रात घनी फिर फिर आएगी
व्यथा वेदना फिर लााएगी ।
फिर हम आस लगा बैठेंंगे
भोर ! जरा जल्दी आ जाना !